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Tuesday, March 19, 2019

March 19, 2019

इस होली पर पानी का ज्ञान क्यों नहीं ? मिजाज कैसे बदला ?

इस होली पर पानी का ज्ञान क्यों नहीं ? मिजाज कैसे बदला ?

जब-जब कमजोर शासकों ने किसी देश पर राज किया है तब-तब उस देश की केवल और केवल दुर्गति ही हुई है | इतिहास उठा कर देखा जाये तो ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जायेंगे | हम ऐसा सिर्फ इसीलिए कह रहे है क्योकि इस बार , हर बार की तरह किसी एक धर्म को निशाने पर रख , उनके त्यौहारों से पहले उनका मानसिक शोषण नहीं किया गया | काहे भईया इस बार ऐसा काहे हुआ ? वो मीडिया वाले चंद " अध जल घघरी छलकत जाए " वालो को इस बार काहे नहीं बुलाये ? इस होली पर पानी का ज्ञान क्यों नहीं ? मिजाज कैसे बदला ?
इस होली पर पानी का ज्ञान क्यों नहीं ? मिजाज कैसे बदला ?

आखिर एक धर्म पर निशाना क्यों ?

जब भारत को आजादी मिली तो लोगो के मन में एक उम्मीद थी की अब हमारा शोषण नहीं किया जायेगा | गाँधी जी ने भी इच्छा जताई थी की अब कांग्रेस को देश के समाप्त कर देना चाहिए | कहा जाता है की 18-19 वोट में से केवल एक वोट नेहरू जी को मिला था , बाकि सरदार पटेल को मिले थे | लेकिन षड्यंत्र अपना रंग दिखा गया | नेहरू जी अपनी चाल में कामयाब हो गए और गाँधी जी ने सरदार पटेल को बैठ जाने को कह दिया | बस उसी समय पश्चिमी सभ्यता से ओतप्रोत नेहरू जी ने देश की संस्कृति और सभ्यता को छलनी करना शुरू कर दिया | 

चूँकि हमारे देश में सहनशीलता बहुत अधिक है | इसी का लाभ बाहरी आक्रांता उठाने लगे | इस बार आक्रांता हमला धर्म नींव पर कर रहे थे | लोगो को पश्चिमी सभ्यता का पाठ पढ़ाया जाने लगा | उन्हें एहसास कराया जाने लगा की तुम्हारे धर्म में केवल अन्धविश्वास और कुरीतियाँ भरी पड़ी है | पुस्तकों में विदेशी सभ्यता को शामिल कर दिया गया और अब तक तो नींव काफी कमजोर होने लगी थी | 


फिर अब ये अचानक बदलाव क्यों ?

भगवत गीता में कहा गया है -
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् |
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे |

ऊपर लिखी पंक्तियों का अर्थ आप खुद निकाल लेना और उसका सम्बन्ध भी |  
बदलाव हर एक चीज़ का गुण है चाहे वो सजीव हो या निर्जीव | पर इस बार बदलाव इंसानो में देखने को मिला जब उन्होंने 2014 में सत्ता परिवर्तन कर दिया | लोग अब समझ चुके थे की कैसे एक राजनितिक दल देश की दुर्गति पे तुला है | अब बुद्धिजीवियों और मीडिया हलचल शुरू हो गई | कई सारी बातो का ताना-बाना बुना गया पर वो निडरता से खड़ा रहा और अंत में देश के लोग सही धारा के साथ जुड़ गए | 

सच्चाई क्या है ?  

कुछ समय पहले जब मीडिया में बुद्धिजीवी अपनी बुद्धिमत्ता का नंगा नाच करते थे तब उनकी हर एक लाइन "हेड लाइन्स" बन जाती थी | उनकी बातो पर रिसर्च तक की जाती थी | सरकारी पैसों पर विदेशी चिड़िया उड़ाई जाती थी | तब TV पर एक धर्म विशेष के बारे में ज्ञान पेला जाता था |

होली से ठीक कुछ दिन पहले होली के " साइड इफेक्ट्स " गिनाये जाते थे | होली को इतना बदनाम किया जाता था की लोग अपनी संस्कृति को घृणा से देखते थे | बड़ी बात ये कही जाती थी की होली पर लाखो लीटर पानी व्यर्थ हो जाता है | इसी बात को प्रभावी तब बना दिया जाता था जब एक लाइन और जोड़ दी जाती थी की भारत में पिने को तो पानी नहीं और यंहा पानी को बर्बाद किया जा रहा है | और अजीब बात तो ये थी की इनकी बातो को कोई दबाने वाला नहीं होता था | क्यों ? क्योंकि उनको टीवी पर बुलाया ही नहीं जाता था |  

क्या ईद पर पानी व्यर्थ नहीं होता ? करोड़ो बकरो की बलि , नहीं नहीं कुर्बानी दी जाती है फिर क्या उनको धोने में पानी नहीं लगता ? फिर वो अधजल वाले बुद्धिजीवी इस पर ज्ञान काहे नहीं बाँटते थे ? अच्छा वो सिर कलम वाला फतवा भी तो होता है ना | ग्लोबल वार्मिंग पर जब चर्चाये होती है तब उनमे एक बात स्पष्ट की जाती है की मांसाहार में काफी ज्यादा ताप उत्सर्जित होता है | यदि इसे बंद कर दिया जाये तो काफी हद तक राहत मिलेगी | 

फिर इसपे हमारे दो कोड़ी के बुद्धिजीवी ज्ञान काहे नहीं देते ? और अब तो होली पे भी ज्ञान गायब हो गया | काहे रे अब का हुई गवा ? कोनो प्रॉब्लम है का ? या चलती नहीं अब ?  

सत्ता परिवर्तन , सोच परिवर्तन -

आखिर में बस यही कहना चाहेंगे की समय हर बात का बदला लेता है चाहे वो नेहरू जी के पीढ़ी से बदला हो चाहे बाहरी सोच से हो | देश की जनता अब लिबरल जैसी चीज़े भी समझने लगे है | खेर ये परिवर्त्तन इतना आसान नहीं था | कुछ राष्ट्रवादीयों की ज़िद थी ये | अब ये जिद जनता ने ले रखी है | चलते रहो राही चलते रहो |

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