चप्पल वालो को पद्मश्री कैसे ? समय बदला या सरकार |
पद्मश्री भारत देश का चौथा सबसे बड़ा पुरस्कार है | 1954 से लेकर अभी तक कुल 2336 लोगो को ये सम्मान दिया जा चूका है | ये पुरस्कार समाज सेवा , खेल , चिकित्सा , विज्ञान ,साहित्य , कला , शिक्षा और विशेष क्षेत्र में उत्कृष योगदान के लिए दिया जाता है | हाल ही मार्च 2019 में दिए गए पद्मश्री पुरस्कार थोड़े अलग लोगो को मिले | पैरो में चप्पल पहने इन लोगो को ये पुरस्कार कैसे मिला होगा ?
चुनाव के समय ज्यादा लोगो को पद्मश्री दिया जाता है ?
यदि हम पद्मश्री पाने वाले लोगो की लिस्ट और दिनांक पर ध्यान दे तो पता चलता है की चुनावी माहौल में दूसरे दिनों के मुकाबले ज्यादा पद्मश्री पुरस्कार दिए गए | ऐसे में ये पूछा जाना कतई गलत नहीं कहा जा सकता की क्या ये चुनावी चाल तो नहीं है ? मौजूदा सरकार हो या पिछली सरकार सब ने यही किया है | पर क्या लोगो के चयन में कोई बदलाव आया है ?
सरकार अपने चेहतो को देती है पद्मश्री पुरस्कार ?
यदि पद्मश्री अवॉर्ड में सरकार की भूमिका की बात करे तो साफ़ तौर से देखा जा सकता है की कैसे राजनीती इस पुरस्कार को भी प्रभावित करती है | महाराष्ट्र , दिल्ली, तमिलनाडु , केरला और कर्नाटक इन पाँच राज्यों को 2000 से 2019 के बिच सबसे ज्यादा पद्मश्री मिले है | यदि आंकड़ों की बात करे तो लगभग 50 % पद्मश्री इन्ही पाँच राज्यों खाते में गए है | इस बात से भी विमुख नहीं होना चाहिए की लोगो के चयन में भी सरकार का हस्तक्षेप होता ही है |
कुछ सालो में चयनित लोग अलग कैसे दिख रहे है ?
कहा जाता है की आज कल सरकार उन्हें ही पुरस्कार या लाभ देती है जो उनकी तारीफ करे या उनके लिए कुछ करे | पर हाल ही में जिन लोगो को पद्मश्री मिले है उन्हें देख कर ऐसा प्रतीत बिल्कुल नहीं होता है | जिन लोगो को पद्मश्री मिला है उन्हें देखकर ऐसा कतई प्रतीत नहीं होता की वो किसी अमीर घर से है | सादगी उनके कपड़ो से नहीं वरन उनके आचरण से झलकती है |
सरकार बदलते ही चयन बदल गए | पहले और अब की तुलना करे तो आपको बहुत अंतर देखने को मिलता है | जो लोग तन-मन से देश हित में लगे है , वही पद्मश्री के असली हकदार है | पहले केवल चाटुकार (सभी नहीं) लोगों को कई बड़े पुरस्कार और बड़ी सुविधाएं दी जाती थी | यदि बात करे आंकड़ों की तो केवल 10% के आस पास ऐसे लोग रहे है जो वाकई इन पुरस्कार के हकदार थे | बाकि लोग कौन रहे होंगे ये हम पहले ही बता चुके है | मोदी सरकार में यदि असली हक़दारो को सम्मान मिलता है तो ये एक उपलब्धि कही जानी चाहिए |
कई लोग पूरी जिंदगी देश सेवा में तल्लीन रहते है पर उनकी सुध कोई भी नेता नहीं लेना चाहता है | इसका एक कारण भी है | सरकार केवल उन्ही लोगो का पक्ष लेगी जो उनकी गुण-गाथा गाते हो | इसमें चाहे बड़े-बड़े बुद्धिजीवी हो या पत्रकार हो |
चप्पल वालो को पद्मश्री मिलना वाकई एक बड़ी बात है | यँहा चप्पल वालो का सीधा अर्थ उन लोगों से है जो दिखने में बिलकुल साधारण है पर प्रतिभा के धनी है | भले नेताओ ने इनको नकारा हो पर अब शायद इन्हे वो सम्मान मिलेगा जिनके ये हकदार है |
चप्पल वालो को पद्मश्री मिलना वाकई एक बड़ी बात है | यँहा चप्पल वालो का सीधा अर्थ उन लोगों से है जो दिखने में बिलकुल साधारण है पर प्रतिभा के धनी है | भले नेताओ ने इनको नकारा हो पर अब शायद इन्हे वो सम्मान मिलेगा जिनके ये हकदार है |
कैसे प्रोटोकॉल टूट गया ?
जैसा की सभी को पता है की राष्ट्रपति देश का पहला और सबसे बड़ा नागरिक होता है | राष्ट्रपति के कुछ प्रोटोकॉल होते है जिनको सबको मानना पड़ता है | अक्सर इन प्रोटोकॉल्स को तोड़ा नहीं जा सकता है | पर 106 साल की साल्लुमारदा थिमक्का को जब राष्ट्रपति ने कैमरे की तरफ मुड़ने को बोले तो उन्होंने अपना हाथ राष्ट्रपति के सिर पर रख दिया , आशीर्वाद देने के लिए | ऐसा कभी देखने को नहीं मिला | प्रोटोकॉल टुटा तो सही पर वँहा मौजूद लोग हँस पड़े |
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