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Wednesday, May 1, 2019

May 01, 2019

मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ , सुन सकते हो ना ? I am India & Want to Ask something , Can you hear ?

मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ , सुन सकते हो ना ? I am India & Want to Ask something , Can you hear ?

चाँदनी रात की दूधिया रौशनी और उसमे चमकता मेरा मुकुट था 
भरत यँहा शेरो से और झाँसी तलवारो से , मेरा अतीत था | 

रण में राणा की हुंकार वो वीर शिवा की गर्जना , मेरा रक्त था 
आओ भारतीयों तुम्हे बताऊ , दिखाऊ मैं पहले भारत था | 


the aunty


ग्वाले और उनकी गाये और फिर शाम का वक्त , शायद उनके खुरों से उड़ती वो गोधूलि कितनी मनोरम हुआ करती थी | दूध और घी की कमी शायद मेरे यँहा कभी नहीं रही | मुझे मेरे लाले सोने की चिड़िया कहा करते थे | गंगा , जमुना का स्वच्छ नीर कितनो का गला तर कर देता था | कान्हा की मुरली से कितने धन्य हुआ करते थे | वो गुरुकुल में सभ्यता का पाठ सीखते मेरे भरत थे | फिर वो कभी गुनगुना देते थे -

हम भारत के भरत खेलते शेरों की संतान से,
कोई देश नहीं दुनिया में बढ़कर हिंदुस्तान से ।

शिक्षा का केंद्र था में | तक्षिला , नालंदा में ना जाने कितने परदेशी धन्य होते गए | संस्कृत जँहा जुबाँ  पर अमृत बिखेर देती थी | शुबह शाम मंदिरो से गूँजते मंत्र जैसे तन-मन को शुद्धि देते जाते थे | मेरे यँहा धन धान्य की कोई कमी नहीं थी | शत्रु तक यँहा भोजन पा जाता था | लोगो में वात्सल्य भरपूर था | मेरे पुत्र वचन के पक्के हुआ करते थे | अच्छा तुमने सुना होगा ना -

रघुकुल रीत सदा चली आई 
प्राण जाये पर वचन ना जाये | 

कई बार मुझ पे गैरो की बुरी नज़रे भी पड़ी पर मेरे वीर पुत्रो ने अपनी जान दे कर मेरी लाज बचाई |  अधर्म जब-जब पाँव पसारता उसको जड़ सहित उखाड़ दिया जाता था | श्री कृष्ण ने महाभारत में उल्लेख किया  -

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ।

अर्थात जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।

हर और से मैं गर्व से परिपूर्ण हुआ करता था | मेरे यँहा तो स्वयं भगवान खेलने को चले आते थे | कश्मीर से कन्याकुमारी तक मैं बस एक था |  समझते हो ना एक होने का मतलब | मेने कभी किसी पर हमला नहीं किया क्योंकि अहिंसा परमो धर्म , मेरा चरित्र था | पर...........

अब ये लाल अक्षर मेरे खून को बंया करेंगे | समय बदलता है , सुना था और आज में स्वयं देख रहा हूँ | अब मैं बिल्कुल बिखर सा गया हूँ | मेरे आँसू पलकों से परे हो गुजर रहे है | मेरी व्यथा सुनो ना ,मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ | सुन सकते हो ना ?

अब मैं अपने ही कश्मीर में रौंदा जाता हूँ | कभी मुकुट हुआ करता कश्मीर अब मेरी दुखती रग बन गया है | मेरे बहादुर बेटो पर पथ्थर मार , गो बैक इंडियन डॉग कहा जाता है | घर में ही आंतकियों को सहारा मिल जाता है | घर का भेदी लंका ढाये , वाली बात मुझसे कुबूल नहीं होती | मेरे खून में ऐसी बात तो न थी | मैं माँ हूँ कैसे मेरे लाल मेरे ही सामने छलनी किये जा रहे है ? मैने ऐसी माँए तो न जनि थी जिसकी कोख आंतकवादी को पैदा करे | मुकुट कैसे धारण करू , इसमें अब कील ही कील है , चुभती है | मेरी व्यथा सुनो ना ,मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ | सुन सकते हो ना ?   
मेरे ही दिल दिल्ली में मुझे तोड़ने की बात की जाती है | रोटी सेकने कुछ परदेशी गिद्ध भी पंहुच जाते है |और कितने टुकड़े करोगे ? अच्छा ऐसा कर फेम भी हासिल हो गया ना | कुछ तथाकथित प्रोफेसर मेरे इतिहास को उखेड़ फेंक रहे है | बोलो मेरा ही दिल मेरे साथ षड़यंत्र रच बैठा है | मेरी बेटियाँ बिच चलते रास्ते आबरू हीन कर दी जाती है | मेरी व्यथा सुनो ना ,मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ | सुन सकते हो ना ?

वो लाल झंडा , वो लाल सलाम |सुना था मैं मात्र तीन रंगो का हु फिर ये सैंकड़ो रंग क्यों थोप दिए गए ?ये मेरे बाजू काट रहे है | मेरे वीर यँहा भी अपनी आहुति दे रहे है | मेरे बाजू अब रक्त विहीन हो गए है | ये मेरे अपने तो नहीं है ,  होते तो आपको को मारते ? नक्सलवाद और इससे जुड़े भेड़िये मुझे नोच रहे है | तुम सुनो ना मेरे बहादुर लाल , अस्मत को मेरी अब तुम बचा लो ना | मैं अब साँस नहीं ले पा रहा हूँ | मेरी व्यथा सुनो ना ,मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ | सुन सकते हो ना ?    

 मेरे चरणों में मेरे बच्चे आंतकवादी बनने जा रहे है ? ISI में भर्ती को जा रहे है ? नहीं नहीं वो मेरे लाल कतई नहीं हो सकते है | सुना है मेरे ये बच्चे सबसे ज्यादा पढ़े लिखे है | फिर कैसे ? कौन इनके दिमाग में ज़हर घोल रहा है ? मेरे चरण अब उठ नहीं पाते | खून से लथपत मेरे कदम अब पूरी तरह से सड़ चुके है |शायद काटने पड़ेंगे ना ? तो तुम काहे नहीं बचा लेते ? मेरी व्यथा सुनो ना ,मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ | सुन सकते हो ना ?

किसके साथ खड़े हो भारतीयों ? देश में जयचंदो और गद्दारो से भयभीत हूँ | तुम मेरी सोचो ना | मैने ही तुम्हे अपने खून से सींचा है | फिर तुम मुझसे दगा क्यों करते हो ? क्या माँ को ही हर बार बलिदान देना होगा ? इस बार तुम मेरा साथ दे दो ना | फिर ना जाने में कितनी अपंग हो जाउंगी | मुझे पहले से ही काफी काटा जा चूका है | में खून से लथपत तड़प , पुकार हूँ | मेरी व्यथा सुनो ना ,मैं भारत तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ | सुन सकते हो ना ?



चाँदनी रात की दूधिया रौशनी और उसमे चमकता मेरा मुकुट था 
भरत यँहा शेरो से और झाँसी तलवारो से , मेरा अतीत था | 

रण में राणा की हुंकार वो वीर शिवा की गर्जना , मेरा रक्त था 
आओ भारतीयों तुम्हे बताऊ , दिखाऊ मैं पहले भारत था | 

😔